रोजाना24न्यूज: श्राद्ध के लिये दोपहर का कुतुप और रौहिण मुहूर्त श्रेष्ठ है।
कुतुप मुहूर्त दोपहर 11:36AM से 12:24PM तक।
रौहिण मुहूर्त दोपहर 12:24PM से दिन में 1:15PM तक।
कुतप काल में किये गये श्राद्ध का अक्षय फल मिलता है।
रोहिणकाल में किए गए श्राद्ध का गया श्राद्ध के समान फल होता है ।
🌞श्राद्ध के लिये योग्य कौन🌞
पिता का श्राद्ध पुत्र करता है। पुत्र के न होने पर, पत्नी को श्राद्ध करना चाहिये।
पत्नी न होने पर, सगा भाई श्राद्ध कर सकता है।
एक से ज्य़ादा पुत्र होने पर, बड़े पुत्र को श्राद्ध करना चाहिये।
अगली पीढ़ी का क्रमशः पौत्र और प्रपोत्रों को करना चाहिए।
🌹श्राद्ध कब न करें🌹
कभी भी रात में श्राद्ध न करें, क्योंकि रात्रि राक्षसी का समय है दोनों संध्याओं के समय भी श्राद्धकर्म नहीं किया जाता है।
🌞श्राद्ध का भोजन कैसा हो🌞
अधिकतर भोज्य पदार्थ पकवान पितरों की पसंद के होने चाहिये वही भोजन श्रेष्ठ है उसका फल अक्षय होता है।
🌹श्राद्ध की महत्वपूर्ण बातें 🌹
मृत्यु के 3 वर्ष के पश्चात चौथे वर्ष में श्राद्ध प्रारंभ करना चाहिए।
घर में शादी व अन्य कार्य होने पर भी उस वर्ष भी श्राद्ध अवश्य करें ।
भोजन कराने के बाद, ब्राह्मणों को वस्त्र दक्षिणा देकर द्वार तक छोड़ें।
ब्राह्मण को घर पर ही भोजन कराने का विधान है
सूखा राशन देना शास्त्र सम्मत नहीं है विषम परिस्थिति मैं जैसे आप घर पर नहीं है यात्रा में या हॉस्पिटल मे है तो दे सकते हैं।
ब्राह्मण भोजन के बाद ही, स्वयं और रिश्तेदारों भोजन करें।
श्राद्ध में कोई भिक्षा मांगे, तो आदर से उसे भिक्षा अवश्य दें।
गाय कुत्ते और कौए का भोजन, गाय कुत्ते और कौए को ही खिलायें।
🌹कहां श्राद्ध करना चाहिये🌹
सगे संबंधी रिश्तेदार के घर में श्राद्ध न करें। निज निवास या किराए के मकान में श्राद्ध करें।
वन, पर्वत, पुण्यतीर्थ और मंदिर दूसरे की भूमि नहीं है इसलिये यहां श्राद्ध कर सकते हैं ।
श्राद्ध में कुशा के प्रयोग से, श्राद्ध राक्षसों की दृष्टि से बच जाता है।
तुलसी चढ़ाने से पितृ, गरूड़ पर सवार होकर विष्णु लोक चले जाते हैं।
🌹पितृ पक्ष में यह कार्य न करें🌹
धर्म शास्त्रों में ऐसी मान्यता है यह 15 दिन मात्र पितरों के पूजन श्राद्ध कर्म के लिए ही निश्चित है इनमें मांगलिक शुभ कार्य शादी विवाह यज्ञोपवीत नामकरण गृह प्रवेश आदि किसी भी प्रकार के शुभ कार्य के लिए वस्त्र अलंकार आदि की खरीददारी पूर्ण रूप से वर्जित है शेष वर्ष के 350 दिनों में
सांसारिक कार्य देव कार्य करने का विधान कहा गया है
🌹 पित्र पक्ष में श्राद्ध की तिथि का चयन कैसे करें और किस तिथि में करें श्राद्ध 🌹
जीव की उत्पत्ति पंच तत्वों से मिलकर हुई है,देहांत के बाद सभी तत्व अपने-अपने स्थान पर पुन: चले जाते हैं,पंचतत्वों के पूर्ण विधान से ही व्यक्ति की आत्मा को देह और मन के बंधन से मुक्ति मिलती है, जिसके माध्यम से वह अपने अगले जन्म की यात्रा पर निकल जाता है। प्राचीन काल में सांसारिक जीव अपने क्षेत्र में ही जीविका चलाता था मृत्यु होने पर, दाह संस्कार,भूमि समाधि,जल समाधि,अंत्येष्टि कर्म उसी दिन कर दिए जाते थे क्योंकि “शव” को रखने की समुचित व्यवस्थाएं भी नहीं थी,वैदिक शास्त्रों में दाह संस्कार की तिथि को ही मान्यता दी गई है”श्राद्ध”में दाह संस्कार की तिथि को ही श्राद्ध करने का विधान है, मृत्यु की तिथि को नहीं करना चाहिए।शवयात्रा,दाहसंस्कार,की क्रिया का वर्णन ही शास्त्रों में आता है। किन्ही परिस्थितियों में मृत्यु के पश्चात 10 दिन तक दाह संस्कार नहीं कर पाते हैं,तो आप “गंगा”जी में अस्थि विसर्जन अन्य सभी कर्मों की गणना कब से करेंगे मृत्यु या संस्कार से।और उसके बाद किए जाने वाले कर्म को सही तरीके से नहीं किए जाने से मृतक की आत्मा भटकती रहती है।
श्राद्ध के भोजन में अति महत्वपूर्ण
पितृ पक्ष में अति महत्वपूर्ण दक्षिण दिशा एवं मृत्यु के देवता यमदेव हैं अतः शास्त्रों के अनुसार, पितृ पक्ष में ब्राह्मणों को दक्षिण दिशा में मुख करके भोजन कराने का विधान है। मान्यता है कि ब्राह्मणों द्वारा किए गयाभोजन सीधा पितरों तक पहुंचता है और आत्मा संतुष्ट होती है।पितृपक्ष में श्राद्ध वाले दिन पितर स्वयं ब्राह्मण के रूप में उपस्थित होकर ब्राह्मण के ही मुख से वह जिस भी योनि में होते हैं वायु के द्वारा उसी रूप में वह भोजन पितर भी करते हैं। स्त्री की मृत्यु पर भी शास्त्रों में स्त्री को भोजन कराने का विधान नहीं है परंपरानुसार यदि स्त्री को भोजन कराना चाहते हैं तो भी साथ में ब्राह्मण का होना नितांत अनिवार्य है ब्राह्मण भोजन के बिना श्राद्ध की परंपरा भी पूर्ण नहीं मानी जाती है। पितृ पक्ष में श्राद्ध से बढ़कर कोई कल्याणकारी कार्य नहीं बताया गया है ब्राह्मण के मुख के द्वारा ही देवता हब्य और पितर कब्य ग्रहण करते हैं,पितरों के निमित्त जो जल देता है श्राद्ध करता है वह पितृपक्ष में तीर्थ यात्रा पर न जाकर पितरों की सेवा करता है पितर प्रसन्न होकर घर परिवार उद्योग को रक्षा कवच की तरह सुरक्षित रखते हैं,और वंशवृद्धि के लिए पितरों की आराधना ही केवल एकमात्र उपाय माना जाता है।
🌹आश्विन कृष्ण पक्ष “पितृ पक्ष” में श्राद्ध की तिथियां🌹
10 सितंबर 2022- पूर्णिमा का श्राद्ध/ प्रतिपदा का श्राद्ध दोनों तिथियों का श्राद्ध 10 सितंबर को ही होगा
11 सितंबर 2022- द्वितीया का श्राद्ध
12 सितंबर 2022- तृतीया का श्राद्ध
13 सितंबर 2022- चतुर्थी का श्राद्ध
14 सितंबर 2022- पंचमी का श्राद्ध
15 सितंबर 2022- षष्ठी का श्राद्ध
16 सितंबर 2022- सप्तमी का श्राद्ध
17 सितंबर 2022 श्राध्द नहीं /महालक्ष्मी व्रत समाप्त
18 सितंबर 2022- अष्टमी का श्राद्ध जीवित्पुत्रिका व्रत
19 सितंबर 2022- नवमी श्राद्ध
20 सितंबर 2022- दशमी का श्राद्ध
21 सितंबर 2022- एकादशी का श्राद्ध
22 सितंबर 2022- द्वादशी/सन्यासियों का श्राद्ध
23 सितंबर 2022- त्रयोदशी का श्राद्ध
24 सितंबर 2022- चतुर्दशी का श्राद्ध
25 सितंबर 2022- अमावस्या का श्राद्ध, सर्वपितृ अमावस्या, सर्वपितृ अमावस्या का श्राद्ध, महालय श्राद्ध