रोजाना24न्यूज: आचार्य राज किशोर शर्मा “राज गुरुजी” ने वताया कई पौराणिक कथा के अनुसार इस व्रत में हाथी पर विराजमान मां लक्ष्मी की पूजा की जाती है। इसलिए इसे हाथी अष्टमी या हाथी पूजन भी कहा जाता है। कई स्थानों पर सिर्फ हाथी की ही पूजा भी की जाती है। मान्यता है कि इस व्रत को करने से घर में सुख-समृद्धि बनी रहती है।
महालक्ष्मी देवी है साक्षात अधिष्ठात्री नारायणी
महालक्ष्मी चल एवं अचल, दृश्य एवं अदृश्य सभी संपत्तियों, सिद्धियों और निधियों की अधिष्ठात्री साक्षात् नारायणी हैं।
अष्टलक्ष्मी स्वभाव से चंचला होने के कारण एक स्थान पर नहीं ठहरती है। हम चाहते हैं कि देवी महालक्ष्मी हमारे घर पर सुख लक्ष्मी,धन लक्ष्मी,वैभव लक्ष्मी,सिद्ध लक्ष्मी,मोक्ष लक्ष्मी,जय लक्ष्मी,स्थिर लक्ष्मी,ऐश्वर्य लक्ष्मी,अनंत काल तक स्थिर हो जाएं। इसी भावना से देवी का पूजन किया जाता है। देवताओं को भी लक्ष्मी प्राप्ति व दर्शन समुद्र मंथन करने के उपरांत ही सम्भव हो पाया था।
व्रत का शुभ मुहूर्त
पंचांग के अनुसार, आश्विन मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि 17 सितंबर, शनिवार की दोपहर 02:14 से शुरू होकर 18 सितंबर, रविवार की शाम 04:33 तक रहेगी। चूंकि महालक्ष्मी व्रत शाम को किया जाता है, इसलिए ये 17 सितंबर, शनिवार को ये व्रत किया जाएगा। इस दिन श्रीवत्स सर्वार्थसिद्धि, अमृतसिद्धि और द्विपुष्कर नाम का शुभ योग होने से महालक्ष्मी व्रत का महत्व और भी बढ़ गया है।
पूजा करने का विधान
17 सितंबर, शनिवार की सुबह जल्दी उठकर स्नान आदि करने के बाद व्रत-पूजा का संकल्प लें और ये मंत्र बोलें-
“करिष्यsहं महालक्ष्मि व्रतमें त्वत्परायणा,
“तदविघ्नेन में यातु समप्तिं स्वत्प्रसादत:।।
अर्थात्- हे देवी, मैं आपकी सेवा में तत्पर होकर आपके इस महाव्रत का पालन करूंगी। मेरा यह व्रत निर्विघ्न पूर्ण हो। मां लक्ष्मी से यह कहकर अपने हाथ की कलाई में डोरा बांध लें, जिसमें 16 गांठे लगी हों।
व्रत-पूजा का संकल्प लेने के बाद किसी साफ स्थान पर देवी लक्ष्मी की प्रतिमा या चित्र स्थापित करें। ध्यान रखें कि इस दिन गजलक्ष्मी यानी हाथी पर बैठी देवी लक्ष्मी की पूजा का विधान है।
इसके बाद देवी लक्ष्मी के सामने शुद्ध घी का दीपक जलाएं और तिलक लगाकर पूजा आरंभ करें। सर्वप्रथम माता को गुलावहार-कमलफूल अर्पित करें। इसके बाद चंदन, अबीर, गुलाल, दूर्वा, लाल सूत, सुपारी, कोडी़, गोमतीचक्र,ताँवेकेसिक्के,श्रीयन्त्र,नारियल आदि वस्तुयें चढ़ाएं।
पूजन के दौरान नए सूत 16-16 की संख्या में 16 बार रखें। इसके बाद नीचे लिखा मंत्र बोलें-
क्षीरोदार्णवसम्भूता लक्ष्मीश्चन्द्र सहोदरा
व्रतोनानेत सन्तुष्टा भवताद्विष्णुबल्लभा
अर्थात- क्षीरसागर से प्रकट हुई लक्ष्मी, चंद्रमा की सहोदर, विष्णु वल्लभा मेरे द्वारा किए ब्रत एवं पूजन से संतुष्ट हों।
अंत में भोग लगाकर देवी की आरती करें। इस प्रकार यह व्रत पूरा होता है। पूजा संपन्न होने पर पहले प्रसाद ग्रहण करें बाद में भोजन कर सकते हैं।
श्रीयंत्र स्थापना का है विशेष महत्व
कहते है पिृत पक्ष में गजलक्ष्मी का पूजन करने से राजयोग, मान सम्मान मिलता है. महालक्ष्मी व्रत में गजलक्ष्मी की पूजा श्राद्ध पक्ष में अष्टमी तिथि के दिन होती है. इस दिन घर में श्रीयंत्र की स्थान करने से दरिद्रता दूर होती है और संतान सुख प्राप्त होता है. साथ ही व्यापार में वृद्धि होती है।