रोज़ाना24न्यूज: आश्विन मास के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि को शरद पूर्णिमा मनाई जाती है। इस बार शरद पूर्णिमा 9 अक्टूबर, रविवार को पड़ रही एक कथा के अनुसार, समुद्र मंथन जब किया जा रहा था तब शरद पूर्णिमा के दिन ही मां लक्ष्मी प्रकट हुई थी। इसी कारण शरद पूर्णिमा के दिन चंद्र देव के साथ मां लक्ष्मी की पूजा करना शुभ माना जाता है। माना जाता है कहते हैं इस दिन चंद्र देव अपने 16 कलाओं से परिपूर्ण होने के कारण उनकी किरणों से अमृत की वर्षा होती है,इस दिन मां लक्ष्मी धरती पर आकर मां अपने भक्तों पर अपार कृपा बरसाती है धन वैभव और सुख-समृद्धि सर्वस्व देती हैं किसी भी चीज की कमी नहीं होने देती है
कमल के गट्टे की माला से ” ऊँ श्रीं ह्रीं श्रीं कमले कमलालये प्रसीद प्रसीद श्रीं ह्रीं श्रीं ऊँ महालक्ष्म्यै नम: मंत्र का जाप करने से मां लक्ष्मी शीघ्र प्रसन्न होती है।
चंद्रोदय का समय
9 अक्टूबर शाम 5 बजकर 58 मिनट
शरद पूर्णिमा पर विशेष योग एवं शुभ मुहूर्त
धुव्र योग के साथ उत्तराभाद्र युक्त रेवती नक्षत्र है चंद्रदेव अपने मित्र स्वग्रही बृहस्पति की मीन राशि पर होने से शरद पूर्णिमा का दिन काफी महत्वपूर्ण है।
ब्रह्म मुहूर्त- 04:40 सुबह से 05:29 सुबह तक
अभिजित मुहूर्त- 11:45 से 12:31 दोपहर तक
विजय मुहूर्त- 02:05 दोपहर से 02:51 दोपहर तक
गोधूलि मुहूर्त- 05:46 शाम से 06:10 शाम तक
अमृत काल- 11:42 दोपहर से 01:15 दोपहर तक
सर्वार्थ सिद्धि योग- 06:18 सुबह से 04:21 शाम तक
शरद पूर्णिमा पर खीर का महत्व
धार्मिक ग्रंथों के अनुसार चन्द्रमा को मन की शीतलता और औषधि का देवता माना जाता है। चंद्रमा शरद पूर्णिमा की रात को पृथ्वी के सबसे पास होकर अपनी 16 कलाओं से परिपूर्ण पृथ्वी पर अमृत की वर्षा करता है। इस दिन चांदनी रात में दूध से बनी खीर का चांदी के पात्र में सेवन करना चाहिए। चांदी में प्रतिरोधक क्षमता अधिक होती है इससे विषाणु दूर रहते हैं। शरद पूर्णिमा की शीतल चांदनी में खीर रखने का विधान है। खीर में मौजूद सभी सामग्री जैसे दूध,चीनी,मावा,और चावल के कारक भी चन्द्रमा ही है,अतः इनमें चन्द्रमा का प्रभाव सर्वाधिक रहता है। शरद पूर्णिमा के दिन खुले आसमान के नीचे खीर पर जब चन्द्रमा की किरणें पड़ती है तो यही खीर अमृत तुल्य हो जाती है जिसको प्रसाद रूप में ग्रहण करने से व्यक्ति वर्ष भर निरोग रहता है। प्राकृतिक चिकित्सालयों में तो इस खीर का सेवन कुछ औषधियां मिलाकर दमा के,नेत्रों के,दिल के,फेफड़ों के रोगियों को भी कराया जाता है। यह खीर पित्तशामक,शीतल,सात्विक होने के साथ वर्ष भर प्रसन्नता और आरोग्यता में सहायक सिद्ध होती है। इससे चित्त को शांति मिलती है,
शरद पूर्णिमा पर क्या करें
शरद पूर्णिमा पर रात्रि में मां लक्ष्मी की आराधना करनी चाहिए। व्यक्ति को शरद पूर्णिमा की रात को कम से कम कुछ घंटों के लिए चंद्रमा की शीतल चांदनी में बैठना चाहिए।
इस दिन बनने वाला वातावरण दमा के रोगियों के लिए विशेषकर लाभकारी माना गया है।
शरद पूर्णिमा की रात्रि में चंद्रमा की तरफ एकटक निहारने से या सुई में धागा पिरोने से नेत्र ज्योति बढ़ती है।
शरद पूर्णिमा की रात को 10 से 12 बजे का समय जब चंद्रमा की रोशनी अपने चरम पर होती हैं उस समय चंद्र दर्शन से क्रोध शांत होता और शीतलता मिलती है।
इस दिन पूर्ण रूप से जल फलों का जूस या फल ग्रहण करके उपवास करें।
व्रत ना भी रखें तो भी इस दिन सात्विक आहार ही ग्रहण करना चाहिए।
काले रंग का प्रयोग न करें, सफ़ेद रंग के वस्त्र धारण करें तो ज्यादा उत्तम होगा।
सफेद वस्तुओं का दान करें
आप शरद पूर्णिमा के दिन चावल, दूध,मावा,चीनी सफेद वस्त्र आदि का दान सुपात्र को करना सबसे अच्छा रहता है या वृद्ध महिला को क्योंकि चंद्रमा का संबंध मां से माना गया है।