रोजाना24न्यूज: ज्योतिषाचार्य राज किशोर शर्मा ने बताया सूर्य ग्रहण अमावस्या पर लगता है,इसी तरह का सूर्य ग्रहण 27 वर्ष पहले दिवाली के 1 दिन पूर्व 24 अक्टूबर को तुला राशि पर लगा था इस बार भी तुला राशि पर ही लग रहा है। 25 अक्टूबर को लगने वाला सूर्य ग्रहण साल 2022 का आखिरी सूर्य ग्रहण और भारत में दिखाई देने वाला पहला सूर्य ग्रहण होगा 25 अक्टूबर को लगने वाला सूर्य ग्रहण भारतीय समय के अनुसार दोपहर 2 बजकर 29 मिनट पर “आइसलैंड” में भारत में शाम को 4:30 तक शुरू होगा, जो शाम 6 बजकर 32 मिनट पर अरब सागर समाप्त होगा।
भारत में सूतक का ग्रहण काल का समय
सूर्य ग्रहण का सूतक काल ग्रहण शुरू होने के 12 घंटे पहले शुरू हो जाता है. चूंकि भारत में सूर्य ग्रहण 25 तारीख को अपराह्न 4:30 बजे दिखाई देगा. इसलिए भारत में इसका सूतक काल दिवाली की रात 24 तारीख को सुबह 4:30 बजे से मान्य होगा।
सूर्यग्रहण का समय
सूर्य ग्रहण स्पर्श दोपहर में 2 बजकर 29 मिनट।
सूर्य ग्रहण मध्य काल शाम 4 बजकर 30 मिनट।
ग्रहण समाप्त शाम को 6 बजकर 32 मिनट पर।
सूर्य ग्रहण की कुल अवधि 4 घंटे 3 मिनट है।
भारत में सूर्यग्रहण का मोक्ष होने से पहले ही सूर्यास्त हो जाएगा। इसलिए भारत में सूर्यास्त ही सूर्यग्रहण का मोक्ष माना जाएगा सूर्य ग्रहण के समय में शहरों के अनुसार कुछ मिनटों का अंतर रहेगा।
भारत में नहीं दिखेगा सूर्य ग्रहण का मोक्ष
25 अक्टूबर को लगने वाला सूर्यग्रहण करीब 4 घंटे 3 मिनट का होगा। और इस ग्रहण का मोक्ष भारत में नहीं देखा जा सकेगा क्योंकि सूर्य ग्रहण समाप्त होने से पहले ही सूर्यास्त हो जाएगा।
सूर्य ग्रहण में जाप साधना का विशेष महत्व
स्वयं के कल्याण के लिए, मंत्र सिद्धि, तंत्र साधना, इष्ट देव की प्रसन्नता के लिए ग्रहण काल सर्वोत्तम समय है किंतु मंदिर के गर्भ गृह में कदापि ना करें।
ग्रहण में क्या करें
भोज्य पदार्थ खाने पीने की वस्तुओं में तुलसी दल या कुशा डालें, तुलसी दल रविवार और अमावस्या को नहीं तोड़े,सभी मंदिरों को बंद रखें, ग्रहण पश्चात सभी स्नान करें गंगाजल का छिड़काव करें मंदिरों में भगवान को स्नान करा कर नवीन वस्त्र धारण कराएं पूर्ण शुद्धि के बाद ही श्रद्धालुओं के दर्शन के लिए मंदिर के कपाट खोलें।
ग्रहण का राशियों पर प्रभाव
इस वर्ष तुला राशि पर सूर्यग्रहण है। मेष राशि: स्त्री पीड़ा, वृष: सौख्य, मिथुन: चिन्ता, कर्क: व्यथा, सिंह: श्रीप्राप्ति, कन्या: क्षति, तुला: घात, वृश्चिक: हानि , धनु: लाभ, मकर: सुख, कुम्भ: माननाश, मीन: मृत्यतुल्य कष्ट।
ग्रहण के बाद दान करने से होते हैं अनिष्ट दोष दूर
सूर्य ग्रहण के बाद लाल कपड़ा, तांबे के पात्र, मसूर दाल, गेंहू,गुड़,लाल फल,शहद,केशर,का दान करना बेहत उत्तम माना गया है। वैदिक ग्रहण के बाद इन चीजों का दान करने से कुंडली में मौजूद ग्रहों के सभी अरिष्ट दोष दूर होते हैं और शुभ फलों की प्राप्ति होती है।
ग्रहण काल में यह न करें
ग्रहण के दौरान भोजन,शयन,क्रोध,गर्भवती महिलाएं शयन न करें करवट लेने से बच्चे के अंग कमजोर हो जाते हैं,चाकू, कैंची और सुई का प्रयोग न करें। तो वहीं इस दौरान ग्रहण के दौरान पति-पत्नी को नहीं मिलना चाहिए।
ग्रहण कब लगता है उसकी कथा
प्राचीन काल में देवताओं और असुरों ने मिलकर समुद्र मंथन किया था। इस मंथन में 14 रत्नों के साथ जब अमृत निकला तब श्रीहरि ने मोहिनी अवतार मैं देवताओं को अमृतपान करवाने लगे। उस समय राहु नाम के असुर ने भी देवताओं का वेश धारण करके अमृत पान कर लिया। चंद्र और सूर्य ने राहु को पहचान लिया और भगवान विष्णु को बता दिया। तब विष्णुजी ने क्रोधित होकर राहु का सिर धड़ से अलग कर दिया। क्योंकि राहु ने भी अमृत पी लिया था इसलिए वह अमर हो गया था। तभी से राहु चंद्र और सूर्य को अपना शत्रु मानता है। समय-समय पर इन ग्रहों को ग्रसता है। शास्त्रों में इसी घटना को सूर्यग्रहण और चंद्रग्रहण कहा जाता है।
जब चंद्रमा, पृथ्वी और सूर्य के मध्य से होकर गुजरता है तथा पृथ्वी से देखने पर सूर्य पूर्ण अथवा आंशिक रूप से चंद्रमा द्वारा आच्छादित होता है। यानी कि जब सूर्य और पृथ्वी के बीच में चंद्रमा आ जाता है तो चंद्रमा के पीछे सूर्य का बिंब कुछ समय के लिए ढक जाता है। इसी घटना को सूर्यग्रहण कहते हैं।
एक पक्ष में दो ग्रहण का होना शुभ संकेत नहीं
एक पक्ष में दो ग्रहण का होना विश्व के लिए शुभ नहीं है। महाभारत काल में भी 15 दिन में दो ग्रहण लथे थे वह शुभ नहीं माने गए,वर्तमान में भी विश्व में सर्वत्र तनाव है। दुनिया विश्वयुद्ध के कगार पर खड़ी है। मानवता के समक्ष घोर संकट है। विश्व में लोग अभाव, भुखमरी और गहन शारीरिक-मानसिक तनाव से त्रस्त हैं। ऐसी स्थिति में मानवीय ज्ञान के अन्यतम श्रोत वेदों की शरण जाने के सिवा कोई मार्ग, समाधान नहीं है। वेदों में महाविनाश और अनिष्ट टालने के लिए अचूक मंत्र और यज्ञों के विधान हैं। जिन्हें अपनाकर विश्व को महान संकट महामारी रोग आपदा से बचाया जा सकता है।
सनातन वैदिक धर्म का पालन करते हुए समग्र विश्व ब्रह्मांड प्रकृति में उत्पन्न विक्षोभ को शांत करने के लिए वैदिक पद्धति से पूजा पाठ, जप, तप, हवन,यज्ञ,अनुष्ठान आदि अधिक से अधिक करना चाहिए जिससे सकारात्मक ऊर्जा सतोगुण की वृद्धि हो सभी प्रकृति के अनुसार सुखमय आनंदपूर्ण जीवन यापन करें।